भारत के पास विशाल जैविक विविधता पूर्ण समुद्री क्षेत्र है जिसमें अनेकों प्रजातियाँ हैं । तटीय आबादी इसी समुद्री संसाधनों पर निर्भर करती है । पर्यावरण के संरक्षण की आवश्यकता विश्व स्तर पर महसूस की गई है । यूएनसीएलओएस 1982 के अनुसार समुद्री पर्यावरण एवं उससे जुड़े संसाधनों के संरक्षण का उत्तरदायित्व तटीय देशों पर है । भारतीय समुद्री क्षेत्र अधिनियम 1976 सरकार को समुद्री पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार प्रदान करता है । तटरक्षक अधिनियम 1978 के अनुसार, समुद्री पर्यावरण संरक्षण एवं समुद्री प्रदूषण नियंत्रण का दायित्व भारतीय तटरक्षक पर है । इस प्रकार सन् 1986 में भारतीय समुद्री क्षेत्र में होने वाले तेल बिखराव पर प्रतिक्रिया करने हेतु भारतीय तटरक्षक को केंद्रीय समन्वय प्राधिकारी की भूमिका सौंपी गई । तथा वाणिज्य पोत अधिनियम 1958 के अंतर्गत तटरक्षक अफसरों को प्रदूषण करने वालों के विरूद्ध आवश्यक कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान किया गया।
किसी प्रकार के तेल बिखराव पर प्रतिक्रिया करने के लिए एजेंसियों के मध्य समन्वय की आवश्यकता है । आवश्यक तैयारी करने की सामूहिक रूप से जरूरत है और इस प्रयास में विभिन्न एजेंसियों की भूमिकाओं का स्पष्ट उल्लेख करती हुई राष्ट्रीय स्तर पर आपदा योजना का निर्माण किया गया है । भारत सरकार ने 1993 में राष्ट्रीय तेल बिखराव विपदा आपात निर्वाह योजना की स्वीकृति प्रदान की है । तथा भारतीय समुद्री क्षेत्र में तेल बिखराव पर प्रतिक्रिया करने के लिए विभिन्न एजेंसियों की भूमिकाओं का स्पष्ट उल्लेख करती हुई राष्ट्रीय स्तर पर आपदा योजना का निर्माण किया गया है । भारत सरकार ने 1993 में राष्ट्रीय तेल बिखराव विपदा आपात निर्वाह योजना की स्वीकृति प्रदान की है । तथा भारतीय समुद्री क्षेत्र में तेल बिखराव पर प्रतिक्रिया करने के लिए विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों की जिम्मेदारी सौंपी है । बंदरगाहों को उनकी सीमा के अंदर तथा तेल एजेंसियों को उसके संस्थान के सारी तरफ 500 मी के क्षेत्र में हुए तेल बिखराव की जिम्मेदारी निभानी होगी । तेल बिखराव के पश्चात् तटों पर पहुँचने पर उसके साफ-सफाई की जिम्मेदारी तटीय प्रदेशों एवं संघीय क्षेत्रों की होगी । 09 अप्रैल 2015 को गोवा में आयोजित 20 वीं एनओएसडीसीपी की बैठक में व्यापक रूप से संशोधित राष्ट्रीय तेल बिखराव विपदा आपात योजना के 2015 के अंक का विमोचन किया गया। संशोधित योजना में वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय मानक एवं सर्वोत्तम पद्धति, मुख्य प्रासंगिक पद्धति, मुख्य प्रासंगिक राष्ट्रीय नियमन एवं प्रपमम विमोचन से अब तक प्राप्त अनुभव सम्मिलित हैं ।
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