ओलाइव रिडले

प्रस्तावना

1974 में ब्राहमनी-बैतरनी (धमरा) के निकट गहिरमाथा रूकरी की खोज एवं वैश्विक पहचान के पश्चात् उड़ीसा में ओलाइव रिडले प्रजाति के कछुओं के संरक्षण के विषय में प्रयास शुरू किया गया । गहिरमाथा के दक्षिण लगभग 55 नाटिकल मील दूर देवी नदी के मुहाने पर 1981 में अंडों के प्रजनन के दूसरे समूह तथा गहिरमाथा के दक्षिण 162 नाटिकल मील दूर रूशीकुल्या नदी के मुहाने पर 1994 में प्रजनन के तीसरे स्थान की खोज हुई ।

प्रति वर्ष नवंबर-दिसंबर के बीच ओलाइव प्रजाति के कछुए ओडिशा के तटों पर अंडे देने के लिए आते हैं तथा अप्रैल-मई तक वहाँ ठहरते हैं । हाल में पता चला है कि अब ये जनवरी के आखिर व फरवरी के शुरुआत में आने लगे हैं । कछुए अंडे देने के लिए मुहानों एवं खाड़ी के निकट संकरे स्थान को चुनते है । एक प्रौढ़ मादा एक बार में लगभग सौ से एस सौ चालीस अंडे देती है ।

तटरक्षक कर्मियों द्वारा ओलिव रिडले कछुए का बचाव की छवि

ओलाइव रिडले प्रजाति के प्रवासी कछुओं को मार्ग में, रहने के स्थान तथा तटीय स्थलों पर कछुओं के प्रतिकूल, मत्स्य शिकार, बंदरगाह के लिए तटीय विकास एवं उसके संदोहन तथा पर्यटन केंद्रों जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण, गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है । यद्यपि कछुओं एवं इनके उत्पादों पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करना प्रतिबंधित है फिर भी मांस, खोल एवं चमड़े के लिए इनका व्यापक रूप से शिकार किया जा रहा है । कछुए के अंडों को इकट्ठा करना गैर-कानूनी है फिर भी तटीय क्षेत्रों की बाजारों में ये बहुतायत रूप से उपलब्ध रहते हैं ।

ओलाइव रिडले प्रजाति के कछुए अनियंत्रित मत्स्य शिकार के कारण प्रजनन ऋतु में जालों में फंसने के कारण गंभीर खतरे का सामना करते हैं । फलस्वरूप प्रौढ़ कछुए दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं । ऐसा माना जाता है कि पिछले 13 वर्षों में मशीनी जाल में फंसकर 1.3 लाख से अधिक कछुए दुर्घटनाग्रस्त हो गये हैं ।

ओलाइव रिडले की छवि

ओलाइव प्रजाति के कछुओं के संरक्षण के लिए कानून

ओलाइव रिडले सहित भारत में मौजूद सभी 5 प्रकार के समुद्री कछुओं को वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुच्छेद I में कानूनी रूप से संरक्षित करने का प्रावधान है । तथा सी आई टी ई एस (CITES) समझौते की परिशिष्ट I में कछुओं के व्यापार पर निषेध है ।

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ओलिविया 2014 का अभियान

अंडे देने की अवधि लगभग छः माह की होती है । भारतीय तटरक्षक ओलाइव प्रजाति के कछुओं का संरक्षण करने के लिए प्रति वर्ष ओलीवा अभियान के कार्यक्रम का संचालन करती है । कमांडर तटरक्षक क्षेत्र (उत्तर-पूर्व) के अधीन एवं समन्वय में तटरक्षक जिला संख्या-7 (ओडिशा) ने 08 नवंबर 2014 को ओलिवा अभियान की शुरूआत की ।

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